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अक्तूबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
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स्कूल की लडकियाँ सुबह पढने जाती हैं लडकियाँ जाने क्या बतियाती हैं आपस में कभी खत्म नहीं होतीं उनकी बातें सडक हो बाजार हो या उनकी कक्षा निकलती हैं झुण्ड में माँ ने सिखाया है – कभी अकेली मत रहना मुस्काती हैं बात-बेबात कलियों की तरह खिले होते हैं उनके चेहरे और दोपहर छुट्टी के समय मानो लहराता है नीली-हरी-लाल वर्दीवाली लडकियों का महासमुद्र निकलती हैं सडक पर एक साथ खेलती-बतियाती अठखेलियाँ करती अल्हड लहरों सी चलती हैं झूमती बस्ता लादे सडकें जाम हो जाती हैं थोडी देर को दोनो पाली में चलते हैं दिल्ली के सरकारी स्कूल स्कूलों के गेट पर होती है ऐसी ही गहमागहमी तनिक देर के लिए फैल जाती है रोज उनकी हरी नीली लाल वर्दी की आभा चारो ओर सडक पर दूसरी पाली मे पढने वाले लडके खडे होते हैं गेट पर भीड मे घुसने को आतुर मुस्काते लपकते बढते हजारों किशोर छू ही लेना चाहते हैं – किसी का हाथ किसी का दुपट्टा या फिर कुछ और करते हैं धक्कामुक्की भीतर घुसने की हडबडी के बहाने लडकियाँ मुस्काती हैं लडकों के बेसबरेपन पर और चली जाती हैं चुपचाप