पगली की माँ  

( विकलांगता विमर्श की कहानी)

# @ भारतेंदु मिश्र  


  रामलखन ईटों के भट्ठे पर काम करता है  | गाँव से दिल्ली आये बीस बरस हो गए ,उसने सुन्दरनगरी अर्थात दिल्ली गाजियाबाद बार्डर की एक मलिन बस्ती में अपना आवास बना लिया है | ऐसी बस्तियां नेताओं को बहुत आकर्षित करती हैं | समस्याएँ और आभाव की धरती पर ही वादों और सपनों की दूकानदारी फलती फूलती |यहाँ ज्यादातर एक कोठारी वाले मकान हैं किचेन और टायलेट  किसी मकान में है किसी में नहीं | किसी जमाने में पॉश दिल्ली से उठा उठाकर विस्थापित लोगों को बार्डर पर आवास दिए  गए फिर आबादी बढ़ती गयी और दलितों निर्धनों विकलांगों के साथ ही पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार के कमाई करने वाले हजारों मजदूर कारीगर और प्ल्म्बरों की ये बस्ती धीरे धीरे घनी होती चली गयी | अब यहाँ हुनर वाले कारीगरों की कमी नहीं है ,सबको पेट  भरने लायक काम भी मिल ही जाता है |यहीं पास में आनंद ग्राम है अर्थात कुष्ठ आश्रम |आनंद ग्राम की दुनिया भी अजूबी है | यहाँ  पास में ही उत्तर पूर्वी दिल्ली का जिला मुख्यालय भी है |कई   दफ्तर होने के नाते बड़े अधिकारियों और एनजीओ वाले कार्यकर्ताओं की गहमागहमी बनी रहती है |

रामलखन की बीबी सीमा तीन चार घरों में चौका बासन झाडू करती है फिर नगर निगम के स्कूल में बच्चों को मिडडे मील वितरण के समय सहायता के लिए स्कूल पहुँच जाती है | एक एनजीओ वाली मैडम उसे  बारह  सौ रुपये महीना  देती  हैं स्कूल में वह एक घंटा काम करती है बच्चों को खाना बंटवाकर सफाई का काम पूरा करके अपने लिए कुछ खाना लेकर लौट आती है  | लेकिन और घरों दूकानों में सफाई का काम करने में उसे रोज करीब पांच घंटे घर से बाहर रहना पड़ता है | राम लखन को तो पूरा दिन ही बाहर रहना पड़ता है |रामलखन दसवीं पास है लेकिन सीमा बस नाम लिख पाती है | चालीस की उम्र होते होते रामलखन के तीन  बच्चे हो गए  | रचना  के बाद राखी  बिटिया और सुनील दूसरा बेटा पैदा  हुआ | इस कठोर मेहनत के बावजूद उसकी कोई तरक्की न हुई | हां तरक्की के नाम पर परिवार का आकार जरूर बढ़ा गया | अब कमरे का किराया भी तीन हजार हो गया है |रामलखन कहीं सही जगह नौकरी कर रहा होता तो कुछ न कुछ  पैसे  में भी तरक्की जरूर होती | गरीब मेहनतकश भाग्यवादी होकर ही रह जाता है | उसकी किस्मत में तो कुछ और बुरा ही लिखा था | उसका दुर्भाग्य ये कि राखी और सुनील के अलावा उसकी  बड़ी  बेटी रचना  मानसिक रूप से दिव्यांग पैदा हुई   | जब सब घर के सदस्य अपने अपने काम पर जाते हैं तो रचना  को कमरे में बंद रहना होता है |पड़ोसी या दूसरा कोई भी उसे नही संभाल सकता |एक दो दिन की बात हो तो कोई मदत कर भी दे लेकिन लगातार कौन संभाले ऐसी  पागल बच्ची को |अब पड़ोसियों ने भी सीमा का नया नाम रखा दिया था - ‘पगली  की माँ ‘

सीमा ने पहले कई बार पड़ोसियों से इस बात पर झगड़ा भी किया लेकिन फिर धीरे धीरे उसने इस अपमान को अपनी किस्मत समझ लिया |एक दिन रामलखन से भी उसने शिकायत की तो उसने कहा- ‘इसमे क्या चिढ़ना,जब अपनी  रचना  पागल है तो का किया जाए | इसको कहीं दूर ले जाके  वहीं चुपचाप छोड़ के आ जाओ |जिए मरे अपनी किस्मत से …| ’

‘अरे, तू बाप है कि कसाई ? अपने बच्चे के लिए ऐसे कोई सोचता है..|’

‘मैं सही बता रहा हूँ ...सबको आजादी मिल जाएगी..अपने जो दो और बच्चे हैं उनकी जिन्दगी सवांर ..ये न ठीक होगी ..किसी लायक नही है ये ..कौन करेगा इससे शादी...कैसे कटेगी इसकी जिन्दगी....’

‘तुम रहने दो मैं ही कुछ करूंगी...’ सीमा ने हार न मानी |


बारह साल पहले जब रचना  पैदा हुई  थी  तो उसकी शक्ल सामान्य बच्चों से कुछ अलग थी |डॉक्टर ने बताया था कि ये बच्चा स्पेशल लगता है |तब  हाँथ पैर से बिलकुल स्वस्थ थी  रामलखन और सीमा को काफी दिनों तक पता ही नहीं चला कि उनकी  रचना  स्पेशल क्यों है ,पैदा होते समय वह रोयी  भी न थी  | अब वह बिलावजह रोने खीझने लगती  है  | रचना  का सिर औसत से कुछ बड़ा  था ,हाँथ पैर कमजोर थे | बैद हकीम ओझा सब के दरबार में गए |कई बार अस्पतालों के धक्के खाए बीमारी का पता न चला |कुछ लोगों ने मज़ार और मंदिर भी बताए सीमा सब जगह रचना  को लेकर गयी लेकिन उसकी हालत टस से मस न हुई |  एकदिन  भिखारी मंगलू बाबा ने सलाह दी - 'इसे चौराहे वाले हनुमान मंदिर के सामने ले के बैठा कर। अच्छी कमाई हो जाएगी,मंगल शनि दो दिन भी बैठेगी तो हफ्ते के खर्च के लिए  बहुत है। ई सब कोढ़ी  लोग बैठता है ना | '

 सीमा सबकी सुनती लेकिन अब किसी का बुरा न मानती।वो सोचती कि जब ऊपर वाले ने ही उसके साथ बुरा किया है तो दूसरे किसी की बात का क्या बुरा मानना। इसके बाद एक दिन जब एनजीओ. वाली मैडम को सीमा ने अपनी रचना की सब बात बताई तो मैडम ने उसकी मदत की | वह सीमा के साथ बड़े अस्पताल गयी ,बड़े अस्पताल में भी एक महीने बाद की डेट मिली लेकिन सीमा रचना  को उठाए बेतहाशा इधर से उधर फिरती रही अबतक कुछ पता न चल पाया |फिर जब  उन्होंने मानसिक अस्पताल में बड़े डाक्टर को दिखाया तो एक दिन डाक्टर ने रामलखन और सीमा को बुलाकर समझाया -

‘ तुम्हारा बच्चा स्पेशल है |इसका दिमाग थोड़ा कम रहेगा | बहुत संभालना पडेगा..’

‘हम गरीब आदमी साहेब ..कैसे क्या करेंगे..?’

‘हजारों बच्चों में एक दो बच्चे ऐसे स्पेशल होते हैं.अभी कुछ टेस्ट कराएंगे फिर और बातें पता चलेंगी .’

रामलखन अब रचना  की ओर से बिल्कुल निराश हो गया था सीमा ने भी सोच लिया कि शायद यही ऊपरवाले की मर्जी है | उसका प्यार बस दूसरे बच्चों के लिए बढ़ता जा रहा था |गरीबी के साथ ऐसी मानसिक दशा वाला बच्ची  उनके जीवन पर भारी बोझ  बनती  जा रही  थी  |

सीमा ने एक दिन फिर एनजीओ वाली मैडम से रचना  के बारे में बात की उसने रचित का आई क्यू टेस्ट कराया कई दिन, कई बार की बैठकों में उसका टेस्ट हुआ | रिपोर्ट आयी तो पता चला कि उसकी स्थित बहुत दयनीय है |आम तौर से सामान्य लोगों का आई.क्यू सत्तर   से अस्सी  के बीच में होता ही है जबकि रचना  का आई.क्यू.कुल सैंतालिस  था |  टेस्ट रिपोर्ट देखने के बाद अस्पताल  वाली बहन जी ने बताया -

‘ये  अपने आप खाना नहीं खा सकती  ,शौच नहीं कर सकती ,कुछ भी बोलकर बता नही सकती  |अगर खो जाए तो लौटके  घर भी नहीं आ सकती  |बहुत सावधानी बरतना तुम्हारा बच्चा स्पेशल है सीमा !’

‘तो बहन जी! कहिए कि ये पागली  है …. ’

‘हाँ...नहीं...पागल कहना ठीक नहीं है ये स्पेशल है,इसकी बुद्धि कम है..मंद बुद्धि है  |’

‘तो ये बड़ी  होके का करेगी ..? कोई ..काम ..मतलब. इसकी जिन्दगी....’

‘सीमा, अभी से बच्चे के काम काज की बातें कर रही हो….’

‘तुम ये सोचो कि ये कैसे अपने निजी काम खुद करने लगे….’

‘बहन जी, भगवान ऐसे बच्चे काहे बनाता है ..? पिछले साल बड़े डाक्टर को दिखाए थे ,उसने भी यही बताया था कि ये ऐसे ही रहेगी  ..कभी कभी मन में आता है कि ये मर ही जाए….

‘क्या बात करती हो सीमा,तुम्हारा अपना बच्चा है नौ महीन खूने से सींचा है अब ऐसी बात कर रही हो..’

‘हम बहुत गरीब लोग हैं बहन जी ,इसका बाप भी यही चाहता है | अब राखी और सुनील के पैदा होने के बाद से इसका बाप चाहता है कि  ये मर जाए | कितना कोई ऐसी  लड़की  को पालेगा…हम तो मजूर आदमी हैं ’


रचना बड़ी  होती  गयी  | सीमा  उसे  कमरे में बंद करके काम पे जाने लगी | अब वह  बारह की  हो गयी | एक दिन मोहल्ला प्रधान  से पता चला कि  ऐसे  बच्चों  का भी दाखिला सरकारी स्कूल में हो सकता है |उसने एनजीओ वाली मैडम से जाकर पूछा तो मैडम ने बताया -

‘सीमा ,दाखिला तो हो जाएगा लेकिन ..इसके लिए हर समय देखभाल के लिए एक आया की जरूरत होगी...इस नगर निगम वाले स्कूल में आया भी नहीं है |’

‘ये कुछ पढ़ लिख ले...तो शायद आगे की  इसकी जिन्दगी कुछ संवर जाए,,.’

‘तुम  ठीक सोचती हो सीमा! लेकिन..ये ज्यादा पढ़ लिख नहीं पायेगी  |...कुछ इसका व्यवहार ठीक हो सकता है...शायद..ज्यादा उम्मीद न करो | देखती हूँ समग्र शिक्षा योजना (एस एस ए )से इसको क्या लाभ मिल सकता है |’

सीमा रचना  को लेकर दाखिला कराने स्कूल भी गयी | उसे एक सरकारी पम्फलेट मिल गया था उसमें लिखा था स्पेशल बच्चों के लिए दाखिला अभियान | उस कागज को लेकर वह पास के स्कूल में गयी |वहां एक खुर्राट मास्टर साहब मिल गए उन्होंने उसे समझाया -

‘सरकार दाखिला अभियान तो चला रही है लेकिन ..तुम्हारा ये बच्ची  तो स्कूल में बैठ ही न पाएगी | सरकारी स्कूलों में तुम तो देख ही रही हो कितनी भीड़ है तुम्हारे बच्चे को बहुत देखभाल की जरूरत है | अभी यहाँ इसे पढ़ाने वाला कोई टीचर भी नहीं है | दूसरा कोई  बच्चा इसे धकेल देगा तो ये उठ भी न पाएगी  | सरकारी स्कूल के बच्चे बहुत शैतान होते हैं ...इसे खिलौना बना लेंगे ,चोट चपेट लग गयी तो ..मर मरा गयी  तो... लेने के देने पड़ जाएंगे  | इसे घर में ही रखो | ’

 ‘ साहब ! क्या ये कुछ भी सीख नहीं सकती ...’

 ‘बुरा मत मानना, ये क्या सीखेगी ..ये तो बेसुध है...समझो पागल है…| ’

बहुत मिन्नतें करती रही सीमा लेकिन रचना  का दाखिला स्कूल में नहीं  हुआ | उसने फिर एनजीओ वाली मैडम से बात की |मैडम ने उसकी तरफ़ से एक चिट्ठी लिखी और सीधे मुख्यमंत्री  के पते पर भेज दी  | चिट्ठी ने रंग दिखाया एक महीने में घूमती हुई चिट्ठी शिक्षा विभाग के अधिकारियों के पास पहुँची | अधिकारियों को ऐसी मुख्यमंत्री से मिली शिकायतें  निपटानी भी पड़ती है..और एक महीने के बाद सीमा का फोन बजा -

‘हेलो ! सीमा जी ,रचना  की मम्मी बोल रही हैं ..’

‘जी साहब ! आप कहाँ से ?’

‘हम शिक्षा विभाग के दफ्तर से बोल रहे हैं.. आपकी  बिटिया  के दाखिले के बारे में बात करनी है | आप अपने बिटिया  को ले जाकर पास वाले स्कूल में दाखिल करा दीजिए |’

‘साहब! हम गए थे लेकिन उन्होंने दाखिला नहीं किया... ’

‘कोई बात नहीं अभी जाइए ..मेरी बात हो गयी है प्रिसिपल साहब से सीधे मिल लीजिए ...दाखिला न करें तो  बताइए | ’

सीमा रचना  को गोद में लेकर स्कूल गयी तो दाखिला इंचार्ज ने उसे फिर आड़े हाथों लिया बोले -

‘तुझे एक बार में समझ नहीं आया ...इसका दाखिला नहीं हो सकता...इसकी हत्या का पाप स्कूल पर  मढ़ना चाहती है |’

सीमा ने फिर भी बहुत मिन्नतें की बताया भी कि मुझे बड़े साहब ने फोन करके दाखिला दिलाने को कहा है , मेरे दो और बच्चे यहीं पढ़ते हैं |..लेकिन मास्टर साहब ने उसकी एक न सुनी | उसने कहा मुझे प्रिंसिपल साहब से मिलना है तो मास्टर साहब और गरम  हो गए |  दाखिले की भीड़ भी थी कुछ मास्टर साहब की हेकड़ी भी बढ़ी  हुई थी |लोगों को दाखिले के लिए मिन्नतें करते देखने में उन्हें शायद कुछ  मज़ा भी आता था |सीमा फिर भी अड़ी रही लेकिन उसकी बात मास्टर साहब ने नहीं मानी| उसे प्रिंसिपल से मिलने नहीं दिया  |खीझकर बोले --

‘तू अब निकल यहाँ से,...ये पागल बच्चों का स्कूल नहीं है ,बकवास करे जा रही है …..जा मैं ही प्रिंसिपल हूँ ..कह दिया, नहीं होगा दाखिला |  तू चाहे तो तेरे दूसरे बच्चों का नाम काट दिया जाए ..ले जा सबको |’ 

‘ नहीं ..साहब,वो तो दोनों बच्चे ठीक हैं, उनको काहे निकाल दोगे ?...’

‘हाँ तो अब यहाँ से  निकल ले..बहुत हो गया..’

सीमा लड़ भिड़कर और  निराश होकर फिर लौट आयी | उसने सब बात एनजीओ वाली मैडम से बतायी | मैडम ने शिक्षा विभाग के दफ्तर में फोन  किया |बड़े अधिकारी से बात हुई ,अधिकारियों ने अपनी कमी छिपाते हुए जल्दबाजी में मैडम से कहा-

‘रचना का तो दाखिला हो चुका है ..हमारे पास सूचना भी आ गयी है |’

‘उसकी दाखिला रिपोर्ट हमें मिल सकती ?’

‘जी अवश्य ..लेकिन आप कल चार बजे तक किसी को भेज कर मंगवा लें |’

‘ठीक है,सर लेकिन उसमें एक और प्रपोजल था कि सुन्दर नगरी में एक स्पेशल स्कूल बनाया जाए..ये बच्चा भी स्पेशल है तो...’

‘जी मैम,आपका वो प्रपोजल सोशल वेलफेयर को भेज दिया गया है | असल में शिक्षा विभाग में स्पेशल स्कूल खोलने  का कोई प्रावधान नही है |...हम लोग तो सभी स्कूलों को इन्क्लूसिव बना रहे हैं | स्पेशल एजूकेटर  सभी स्कूलों में आ भी चुके हैं |’

‘जी लेकिन ऐसे बच्चे जो माडरेट कैटेगरी के हैं उनका क्या..? उन्हें शिक्षा के सामान अवसर कौन देगा ? ..उनका मौलिक अधिकार...’

‘जी मैं तो इसका दाखिला करवा सकता हूँ ,स्कूल को जो मदत चाहिए वो भी दिलवा सकता हूँ..इसको मिलने वाले फंड ,पढाई लिखाई का सामान,मिड्डे मील वगैरह .. बाकी स्पेशल स्कूल खोलने के लिए शिक्षा विभाग में कोई योजना नहीं |..आप चाहें तो अपनी एनजीओ से कुछ शुरुआत कर सकती हैं.. समग्र शिक्षा के अंतर्गत कुछ फंडिंग हो सके शायद |’

‘ओके ..थैंक्स ..सर ! |’

डायरेक्टर ने फोन रखकर अपने पीएस से कहा-

‘ज़रा सुन्दर नगरी  इलाके के उपनिदेशक से बात कराओ …’

‘यस सर !...जी ..ये शर्मा जी लाइन पर हैं ’

‘ शर्मा जी ,ये सुन्दर नगरी में कौन है प्रिंसिपल..?’

‘जी सर! पता करता हूँ ..अभी बताता हूँ...’

 मुख्यमंत्री जी के यहाँ से मार्क होकर चिट्ठी आयी थी तो डायरेक्टर साहब आवेश में थे वो बोलते गए-

‘आप क्या बताएंगे..? जानकारी आपकी टेबल पर होगी नही ? अब सुनिए … मुझे चार बजे तक एक दिव्यांग  बच्ची  रचना  का एडमीशन नंबर चाहिए .. वहां स्पेशल एजूकेटर कौन है उसका डिटेल भी चाहिए |और उस प्रिंसिपल को शोकॉज वगैरह दीजिए..चार बजे मतलब चार बजे…|’

‘यस सर !...भेजता हूँ…|’

शर्मा जी ने फोन बंद होते ही अपने ड्राइवर को बुलाया गाड़ी  निकलवाई |एक और शिक्षा अधिकारी को साथ लिया फिर सुन्दर नगरी के लिए चल पड़े| दोनों आपस में नौकरी की कठिनाई ,ज़माना बदल जाने और विकलांग बच्चों  के दाखिला अभियान पर बात करते रहे |उन्हें हास्यास्पद लग रहा था कि अब गूंगे बहरों, अपंगों और पागलों को भी नार्मल स्कूल में दाखिल कराया जाएगा तो स्कूल की क्या हालत हो जाएगी...मतलब सामान्य बच्चों की पढाई लिखाई गयी भाड़  में..| एनजीओ वाली चिट्ठी साथ में थी तो उसमें रचना  का पता भी लिखा था |उसका घर स्कूल के बहुत पास में था | स्कूल के  गेट पर पहुंचते ही शर्मा जी ने शिक्षा अधिकारी को निर्देश दिया - ‘इसके  पते पर जाकर देखो ये बच्ची  किस हालात में है | अगर मिल जाए तो उसे साथ ही ले आना |उसका दाखिला कराना है | एडमीशन नंबर अभी हेडक्वाटर  भेजना है..’

‘यस  सर ! ड्राइवर ने कहा सर,स्कूल से एक टीचर को ले लें तो घर खोजने में आसानी ... ’

‘ठीक है,कुछ भी करो  ,उसे लेकर आओ..’

एक  टीचर ड्राइवर और अधिकारी महोदय रचना  का पता खोजकर उसके घर पहुंचे ..लेकिन कमरे पर ताला लगा था |पड़ोस से पता किया तो मालूम हुआ कि उसकी माँ कहीं काम पर गयी है और रचना  अकेली  कमरे में बंद है | कमरे से कुछ घों घों जैसी आवाजें भी आ रही थीं |पड़ोसियों की मदत से सीमा को बुलवाया गया | उसे देखते ही अधिकारी ने डांटना शुरू किया-

‘ऐसे बच्चे को क़ैद करके रखती हो..शर्म नहीं आती , इसने कौन गुनाह किया है ? तुम माँ हो कि जल्लाद….|.’

‘साहब ! नमस्ते..गरीब आदमी हूँ, पेट  के लिए मंजूरी करनी पड़ती है.. इसे खुला तो नहीं छोड़ सकती ...इसका दिमाग…..’

‘चलो कोई बात नहीं इसका कोई कागज़ हो तो ले लो, स्कूल में इसका दाखिला कराना है |’

सीमा मुस्कुराई, उसने रचना  के कागज़ लिए उसको गोद में उठाया और चल पड़ी | अधिकारी ने उसे गाड़ी में बैठने को कहा | पांच मिनट में स्कूल आ गया | 

उपनिदेशक शर्मा जी बहुत गुस्से में थे उन्होंने आते ही सब हाल पता किया तो मालूम हुआ कि दाखिला इंचार्ज टीचर ने सीमा को कभी प्रिंसिपल साहब से मिलने ही नही दिया था | मास्टर साहब का तत्काल ट्रांसफर आर्डर प्रस्तावित किया गया |प्रिंसिपल साहब को शोकॉज मिला और तत्काल शिक्षा अधिकार के मौलिक के अंतर्गत रचना  को  कक्षा  छह  में दाखिला दे दिया गया | उसका एडमीशन नंबर वहीं से सीधे  ई मेल करके  डायरेक्टर साहब को सूचित किया गया | सीमा बहुत खुश थी,रचना  प्रिंसिपल साहब के कमरे में रखी कम्प्यूटर टेबल के समीप कुर्सी पर बैठी  थी , उसने खड़े होकर कम्प्यूटर के कीबोर्ड  पर अंगुलियाँ फिरानी शुरू कर दीं |

सीमा उसे रोकने के लिए दौड़ी लेकिन उपशिक्षा निदेशक ने उसे रोक लिया | रचना  किसी प्यानो की तरह कम्प्यूटर के कीबोर्ड पर अंगुलियाँ फिरा रही  थी ,उसके चहरे  पर आत्मा की नैसर्गिक मुस्कान थी |

उपशिक्षा निदेशक ने कहा -’बहुत खूब.. प्रिंसिपल साहब ! अब ये बच्ची  यही पढ़ने आयेगी  | सीमा जी आप रोज इसके साथ ही आया करो |आपके दूसरे बच्चे भी यहीं पढ़ते हैं उन्हें इसकी देखभाल करने के लिए तैयार कर  दीजिए  |  वाह,कितनी पवित्र है इसकी हँसी ,इसकी खुशी..| हम जानते हैं , ये दूसरे सामान्य बच्चों की तरह पढ़ लिख न पाएगी  लेकिन यहाँ वह कुछ  घंटे आजाद रह कर अपने हमजोली बच्चों को देखेगी  तो उनसे जीवन का व्यवहार जरूर सीखेगी …|प्रिंसिपल साहब! अगर इसको कुछ हद तक हम लोग आत्मनिर्भर भी बना सके तो इसके जीवन के लिए बहुत बड़ी शिक्षा होगी | इसके जीवन में तनिक भी बदलाव ला सके तो ये आपके शैक्षणिक  जीवन का सबसे बड़ा पुरस्कार होगा |स्पेशल एजूकेटर से इसकी केस स्टडी करवाओ और तीन महीने के टार्गेट वाली  आई.ई.पी. (व्यक्तिगत पाठ योजना) मुझे एक सप्ताह में चाहिए | ’

‘यस सर ! ..हो जाएगा ’

रचना  थोड़ा किटकिटाते हुए ‘ ऊह ऊह ‘..करके मुस्कुराने लगी  |

उसकी माँ की आँखों से आंसू निकल पड़े...शर्मा ने पूछा आप क्यों रो रही हैं ...अब तो दाखिला हो गया..?

‘साहब मैं तो खुशी के मारे रो रही हूँ , ये रचना  जब दांत किटकिटाकर ऊह ऊह करती  है तो बहुत खुश होती  है, माने अब देवी बहुत खुश हैं |’ 

‘चलिए,आप का बच्चा खुश, आप भी खुश, देवी भी खुश तो बहुत अच्छी बात है | कोई दिक्कत हो तो ये मेरा कार्ड रखो ..कभी कोई जरूरत हो तो मुझे बताना |’उपशिक्षा निदेशक ने आगे बढ़कर रचना से हाँथ मिलाया |उसके सिर पर हाँथ फिराया और चल पड़े |

रचना  बंद कोठारी से खुले आसमान में अपने हमउम्र साथियों को देखकर हसंना सीखने लगी  | हालांकि उसकी आगे की राह अभी आसान नहीं हुई थी |घर आने पर शाम को सीमा ने रामलखन को सब घटना बतायी ..लेकिन उस पर सीमा की इस खुशी का कोई असर नही पड़ा | प्रतिक्रया देते हुए उसने कहा- क्या करेगी...इस पगली  की पवित्र हँसी का ? इसकी हँसी देखकर इसकी शादी हो जाएगी…. जितने दिन जियेगी  बोझ बनी  रहेगी | इसकी चिंता छोड़ ..दूसरे बच्चों पे ध्यान दे | ये हनुमान मंदिर पर बैठाने लायक हो जाए तो बता देना मंगल बाबा कह रहे थे , दो हजार रुपये महीन देंगे...|’ सीमा देर रात तक अपनी रचना  को छाती से लगाए  सिसकियाँ भरती रही | बेटी के बाप के ये शब्द उसका कलेजा चीर रहे थे लेकिन गरीबी और लड़की की दिव्यांगता जैसी समस्याओं का कोई समाधान उसे नहीं दिख रहा था | हालांकि  स्कूल में दाखिले के बाद अब उसे न जाने क्यों उजास की एक धुंधली सी राह नजर आने लगी थी |

################################

संपर्क :

सी-45 / वाई - 4 ,दिलशाद गार्डन ,दिल्ली -110095

फोन-9868031384


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

# दिव्यांगों की लाठी और भारतीय समाज