सफिया का हालचाल

(कविता)

जब से होश सँभाला

बस अम्मी के कन्धे पर रही

अस्पताल हो या पीरबाबा की मजार

स्कूल से घर और घर से स्कूल तक

अम्मी का कन्धा ही उसका रिक्शा बना

जब कभी अम्मी बीमार हुई उसे छुट्टी करनी पडी

तमाम दुआओं ताबीजों के बावजूद

अपने पैरों कभी खडी नही हो पायी सफिया

बैसाखी के बल मुश्किल था

स्कूल तक पहुँचना

रिक्शे के पैसे न थे

पर वो हारी नही

गरीबी और अपंगता से

लडती रही अकेली

बिना सहेली

फिर एक दिन सफिया को स्कूल से मिली

एक ट्राईसाइकल

उसकी सीट पर बैठकर पहलीबार

वो रोई थी देर तक खुशी से

अब तो उसके ख्वाबों के पर निकल आये हैं

वो अपने हाथों तय करती है

अपना सफर बेखौफ

सहेलियाँ भी पूँछ्ती हैं

सफिया का हाल चाल

टिप्पणियाँ

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…
अंतस को झकझोरती मर्मस्पर्शी रचना !
हार्दिक शुभकामनायें !
नि:शक्त बच्ची के मनोबल को बढ़ाने वाली सकारात्मक अभिव्यक्ति। तिपहिया साइकिल शायद न मिल पाती, बावजूद विपरीत परिस्थितियों के हिम्मत जुटाकर अगर न जाती रहती स्कूल सफिया।

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