# दिव्यांगों की लाठी और भारतीय समाज
पुस्तक- अधेड़ हो आयी है गोले / लेखक- भारतेंदु मिश्र समीक्षा- सत्यम भारती # दिव्यांगों की लाठी और भारतीय समाज 2011 के जनगणना के अनुसार भारत में विकलांगों की कुल संख्या 2.68 करोड़ थी जो देश की कुल आबादी का 2.21% था । इतनी बड़ी आबादी समाज में अलग-थलग और विस्थापित रह रही है और रोज भेदभाव की शिकार हो रही है, जो चिंतनीय विषय है । इनकी स्थिति में सुधार के लिए भारत सरकार की तरफ से कोशिश तो की गई लेकिन यथार्थ में इसका ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ सका । विकलांगों की स्थिति अभी भी हमारे समाज में अत्यंत दयनीय है । लोग उन्हें भार के समान मानते हैं लेकिन वास्तविकता ऐसी नहीं है । अगर उन्हें भी जरूरी अधिकार और सम्मान मिले तो वो अपनी प्रतिभा दिखा सकते हैं । आज कितने दिव्यांग सरकारी नौकरी और समाज सेवा कर रहे हैं, देश की टॉप कंपनियों में 0.5% विकलांग काम कर रहे हैं । विकलांग व्यक्तियों की श्रेणी में दृष्टिवाधित, श्रवण बाधित, वाकबाधित,अस्थि विकलांग और मानसिक रूप से विकलांग व्यक्ति शामिल हैं । भारत सरकार द्वारा उनके हक के लिए और उन्हें उचित अवसर प्रदान करने के लिए " आरपीडब्ल्यूडी एक्ट " लाया गय
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